मोदी और शी सीधे बात क्यों नहीं करते ?

author-image
sootr editor
एडिट
New Update
मोदी और शी सीधे बात क्यों नहीं करते ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने दो दिन तक विशेष अतिथि रहकर इस्लामाबाद में इस्लामी सहयोग संगठन के सम्मेलन में भाग लिया। अब वे भारत आ रहे हैं और फिर वे श्रीलंका जाएंगे। वे भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर से पहले भी मिल चुके हैं। गलवान घाटी की मुठभेड़ से जन्मे तनाव को दोनों विदेश मंत्रियों की भेंट जरा भी कम नहीं कर पाई। इसी तरह दोनों देशों के सैन्य अफसरों की कई लंबी-लंबी बैठकों से भी कोई हल नहीं निकला। पिछले दो साल में सीमा की इस मुठभेड़ ने दोनों देशों के बीच रिश्तों को खराब किया है। जैसे 1962 के बाद कभी-कभी हो जाते थे।



भारत-चीन के व्यापारिक संबंधः गंभीर सीमा-विवाद के बावजूद दोनों राष्ट्रों के बीच व्यापार जिस गति से बढ़ता रहा, परस्पर यात्राएं होती रहीं और दोनों देशों के नेताओं के बीच जैसा संवाद चलता रहा, वह सारी दुनिया में चर्चा का विषय बनता रहा। भारत और चीन कई ज्वलंत अंतरराष्ट्रीय प्रश्नों पर समान रवैया अपनाकर परिपक्व नीतियों का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करते रहे हैं लेकिन गलवान घाटी के मुद्दे पर यह तनाव इतना लंबा कैसे खिंच गया? यह ठीक है कि भारत के 20 सैनिक मारे गए लेकिन समझा जाता है कि चीन के भी कम से कम 50 सैनिक हताहत हुए। जहां तक चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय जमीन पर कब्जा करने का सवाल है, स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा था कि भारत ने चीन को अपनी एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं करने दिया है। तो फिर झगड़ा किस बात का है? गलतफहमियों और दोनों तरफ के स्थानीय फौजी कमांडरों की भूल से यदि मुठभेड़ हो गई और उसमें अत्यंत दुखद मौतें हो गईं तो दोनों तरफ से अफसोस जाहिर किया जा सकता है और मामले को हल माना जा सकता है। 



कौन जाना चाहते हैं सीमा पारः जहां तक सीमाओं के उल्लंघन का सवाल है, दोनों देशों के सैनिक और नागरिक साल में सैकड़ों बार एक-दूसरे की सीमा में घुस जाते हैं। सीमाओं पर न कोई दीवार बनी हुई है और न ही तार लगे हुए हैं। यह मामला तो छोटा है लेकिन इसने काफी गंभीर रुप धारण कर लिया है। दोनों राष्ट्र एक-दूसरे के आगे झुकते हुए नजर नहीं आना चाहते हैं। इसके फलस्वरुप कई कठिनाइयां पैदा हो गई हैं। भारत के लगभग 20 हजार छात्र और नागरिक, जो चीन में कार्यरत थे, वे महामारी के कारण भारत आ गए थे, वे अब लौटना चाहते हैं। कई चीनी कंपनियों का व्यापार ठप्प हो गया है। वे भी भारत लौटना चाहती हैं। 



चीनी विदेश मंत्री की दिल्ली यात्राः भारत की चिंता यह है कि द्विपक्षीय व्यापार में उसका असंतुलन 80 बिलियन डॉलर तक हो गया है। इसके अलावा आजकल पाकिस्तान के साथ चीन की घनिष्टता भी बढ़ती चली जा रही है। इस समय यूक्रेन-संकट के मामले में भारत और चीन लगभग एक-जैसा रवैया अपनाए हुए हैं। हालांकि चीन ऐसा कोई अवसर अपने हाथ से जाने नहीं देता है कि जिससे वह अमेरिका पर कूटनीतिक हमला बोल सके। वांग यी की दिल्ली-यात्रा कितनी सफल होगी, कहा नहीं जा सकता। यदि नरेंद्र मोदी अपने परम मित्र चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग से सीधे बात करें तो गाड़ी आसानी से पटरी पर आ सकती है।


Prime Minister Modi प्रधानमंत्री मोदी India-China relations भारत-चीन संबंध डॉ. वेदप्रताप वैदिक Dr. Vedapratap Vaidik भारत चीन राष्ट्रपति शी जिंपिंग चीनी विदेश मंत्री वांग यी India China President Xi Jinping Chinese Foreign Minister Wang Yi